बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 तृतीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- विकास से आपका क्या अभिप्राय है? बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन- कौन-सी हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर -
विकास - विभिन्न मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि विकास भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को लांघने वाली एक प्रक्रिया है। बच्चों के सम्बन्ध में किये गये विभिन्न प्रकार के अध्ययनों से भी यह स्पष्ट होता हैं कि भिन्न-भिन्न आयु में बच्चों मंा विशिष्ट प्रकार के विकास होते हैं। यही कारण है कि एक विशेष अवस्था में होने वाले विकास को हम इस अवस्था से पहले और बाद की अवस्थाओं में होने वाले विकास से अलग कर सकते हैं। विकास की प्रत्येक अवस्था की अपनी विशिष्ट व्यवहार शैली होती है। हालांकि यह सत्य है कि विकास की इन विभिन्न अवस्थाओं के बीच कोई ऐसी निश्चित रेखा नहीं है, जो इनको एक-दूसरे से अलग कर सकती है। फिर भी बच्चों के बारे में किये गये विभिन्न अध्ययनों के आधार पर यह पता चलता है कि बच्चों की विकास प्रणाली को विभिन्न विकासात्मक अवस्थाओं में बांटा जा सकता है। विकासात्मक अवस्थाओं की शुरुआत गर्भधारण के समय से शुरू होती है तथा व्यक्ति जब तक परिपक्वावस्था को प्राप्त नहीं कर लेता है, तब तक चलती रहती है तथा विकास की गति इन भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में मन्द या तीव्र बनी रहती है। मुख्य रूप से बच्चों की विकासात्मक प्रणाली की निम्नलिखित बहुत-सी अवस्थायें पाई जाती हैं, जिनमें एक विशिष्ट प्रकार का विकास बच्चे की उम्र विशेष में दिखाई देता है।
विकास की विभिन्न अवस्थाएँ - व्यक्ति के विकास की प्रक्रिया के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं हैं। अलग-अलग विद्वानों ने विकास की विभिन्न अवस्थाओं के सम्बन्ध में अलग-अलग विचार प्रकट किये हैं। विकास की विभिन्न अवस्थाओं के वर्गीकरण के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण विद्वानों के विचार इस प्रकार से हैं-
1. रॉस ने विकास की प्रमुख रूप से चार निम्नलिखित अवस्थायें बतलायी हैं
(i) शैशवास्था-----------------------------1 से 3 वर्ष तक
(ii) प्रारंभिक बाल्यावस्था --------------- 3 से 6 वर्ष तक
(iii) उत्तर बाल्यावस्था ---------------- 6 से 12 वर्ष तक
(iv) किशोरावस्था-----------------------12 से 18 वर्ष तक।
2. शैले ने विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित अवस्थाओं में बांटा है-
(i) शैशवास्था ------------------------ जन्म से लेकर 5 वर्ष तक
(ii) बाल्यावस्था ---------------------6 से लेकर 12 वर्ष तक
(iii) किशोरावस्था -------------------12 से लेकर 18 वर्ष तक।
3. कालसनिक ने विकास की प्रक्रिया का निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकरण किया है-
(i) पूर्व जन्म काल ---------------गर्भाधान से लेकर जन्म समय तक
(ii) नवशैशव -------------------- जन्म से लेकर 3 या 4 सप्ताह तक।
(iii) आरंभिक --------------------शैशव 1 से लेकर 15 महीने तक।
(iv) अंतर शैशव -----------------15 से लेकर 30 महीने तक।
(v) पूर्व बाल्यावस्था-------------2 से लेकर 5 वर्ष तक।
(vi) मध्य बाल्यावस्था ---------6 से लेकर 12 वर्ष तक।
(vii) किशोरावस्था -------------12 से लेकर 21 वर्ष तक।
4. ई.वी. हरलॉक ने विकास की अवस्थाएँ निम्न प्रकार से बताई हैं-
(i) जन्म- पूर्व की अवस्था ---------------गर्भाधान से जन्म तक का समय अर्थात् 280 दिन।
(ii) शैशवावस्था -------------------------जन्म से लेकर 2 सप्ताह।
(iii) शिशुकाल ---------------------------2 वर्ष तक।
(iv) बाल्यकाल --------------------------2 से 11 या 12 वर्ष तक, इसके दो भाग हैं-
(a) पूर्व बाल्यकाल ----------------2-6 वर्ष तक।
(b) उत्तर बाल्यकाल-------------से 12 वर्ष तक।
(v) किशोरावस्था ---------------------11 से 13 वर्ष से लेकर 20-21 वर्ष तक की अवधि। इसके निम्न भाग हैं-
(a) प्राक्किशोरावस्था-लड़कियों में 11-13 वर्ष तक। लड़कों में एक वर्ष पश्चात्।
(b) पूर्व - किशोरावस्था
(c) उत्तर - किशोरावस्था।
उपरोक्त वर्गीकरणों को ध्यान में रखते हुए विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
1. जन्म से पूर्व की अवस्था - विकास की यह अवस्था गर्भधारण से लेकर बालक के जन्म लेने तक की अवस्था है। माता के रजकण डिम्ब तथा पिता के शुक्राणु की जैसे ही निषेचन क्रिया होती है, वैसे ही भ्रूण का विकास प्रारंभ हो जाता है। इस अवस्था में भ्रूण नौ महीने तक तेज गति से माता के गर्भ में विकसित होता रहता है। इस अवस्था के सूक्ष्म निषेचित कोष को नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। बाद में यह सूक्ष्म निषेचित कोष पूर्ण विकसित बच्चे का रूप धारण कर लेता है। विकास की इस अवस्था को मुख्य रूप में तीन निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
(i) डिम्ब अवस्था - इस अवस्था को 'बीजावस्था' भी कहते हैं। डिम्ब अवस्था की अवधि गर्भाधारण से लेकर दो सप्ताह तक होती है।
(ii) भ्रूण अवस्था - यह अवस्था दो से लेकर आठ महीने तक होती है। इस अवस्था में जीव भ्रूण कहलाता है। इस अवधि में भ्रूण में अनेक प्रकार के बाह्य तथा आंतरिक अंगों का विकास होता है। दो महीने के अंत तक भ्रूण की आकृति मानव का रूप धारण कर लेती है।
(iii) गर्भस्थ शिशु अवस्था - विकास की यह अवस्था आठ सप्ताह से लेकर जन्म काल तर्फे की होती है। इस अवस्था के अंतर्गत भ्रूण अवस्था में जिन बाह्य व आंतरिक अंगों का विकास होता हैं, वह निरंतर चलता है तथा जीव की सभी ज्ञानेन्द्रियों का विकास भी इसी अवस्था में शुरू हो जाता है। 2. शैशवावस्था शैशवावस्था भावी जीवन-संरचना की आधारशिला होती है। व्यक्ति की अभिवृद्धि तथा विकास में शैशवावस्था का निर्णायक महत्त्व होता है।
गुडेनफ के शब्दों में - "व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है, उसका आधा तीन वर्ष की आयु तक हो जाता है।"
ऐडलर के मत से - "बालक के जन्म के कुछ माह बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है कि जीवन में उसका क्या स्थान है।"
स्ट्रांग के अनुसार "जीवन के प्रथम दो वर्षों में बालक अपनी भावी जीवन का शिलान्यास करता है। यद्यपि किसी आयु में उसमें परिवर्तन हो सकता है, पर प्रारम्भिक प्रवृत्तियाँ एवं प्रतिमान सदैव बने रहते हैं।"
यह अवस्था बालक के जन्म से लेकर दो वर्ष तक चलती है। जन्म के बाद पहले दो सप्ताह तक शिशु अपनी बाहरी वातावरण के साथ पूर्ण रूप से समायोजन स्थापित कर लेता है। इस अवधि के अंतर्गत विकास की गति बहुत कम होती है। दो सप्ताह के पश्चात् शिशु के विकास की प्रक्रिया बहुत अधिक तीव्र हो जाती है। इस अवधि में बालकों में संवेदी तथा मांसपेशीय कौशलों का विकास होता जाता है। दूसरे वर्ष के अंत तक बच्चों में पर्याप्त मात्रा में क्रियात्मक कौशलों का विकास होता जाता है। इस अवस्था के दौरान बालक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर आश्रित रहता है। परिणामस्वरूप वह स्वयं उठने बैठने, खेलने, चलने जैसी क्रियायें करना शुरू कर देता है।
3. पूर्व-बाल्यावस्था - विकास की यह अवस्था 2 वर्ष से लेकर 6 या 7 वर्ष तक चलती है। इस अवस्था में बालक का विकास शैशवावस्था की भांति तीव्रता से नहीं होता है। पूर्व बाल्यावस्था में बालक बोलने सम्बन्धी कौशलों तथा अन्य क्रियात्मक कौशलों जैसे गेंद फेंकना, चलना, दौड़ना और ठोकर मारना आदि क्रियायें सीख जाता है। तीन वर्ष की आयु में बालक वयस्कों की भाषा का प्रयोग करना सीख जाता है, व लगभग समायोजन करना भी सीख जाता है। इस अवस्था में बालक प्रश्न पूछना एवं उत्तर देना भी सीख जाता है।
4. उत्तर-बाल्यावस्था - यह अवस्था 6-7 वर्ष से लेकर 10-11 वर्ष तक की होती है। इस अवस्था में बालकों में पूर्ण आत्मविश्वास व विभिन्न कौशलों का विकास होता है। विकास के इस अवस्था की मुख्य विशेषता बालक का समाजीकरण है। इस अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रारंभ कर देता है और अपने संगी-साथियों के साथ रहकर जीवन की वास्तविकताओं से परिचित होने लगता है। बालक की संगी-साथियों के साथ विशेष लगाव होने के कारण इस अवस्था में बालक में सुझाव ग्रहणशीलता, अधिक पाई जाती है। इस अवस्था के अंतर्गत बालक पढ़ना, लिखना तथा अपने साथियों के साथ प्यार व प्रतियोगिता की भावना को ग्रहण करना सीख लेता है।
5. किशोरावस्था - किशोरावस्था अर्थात 'Adolescence' का अर्थ है "To grow maturity" अर्थात् " परिपक्वता की ओर बढ़ना।" यह अवस्था 11-12 वर्ष से लेकर 21 वर्ष तक मानी जाती है। इस अवस्था की शुरुआत वयःसन्धि अवस्था से आरंभ हो जाती है। विकास की इस अवस्था में बालकों में विकास बहुत तीव्र गति से होता है। लड़कों की आवाज भारी हो जाती है एवं प्रजनन संस्थान में भी तेजी से परिपक्वता आ जाती है। विकास की इस अवस्था में किशोर एवं किशोरियों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है, तथा तीव्र परिवर्तनों के कारण उनके मन में काफी तनाव उत्पन्न हो जाता है और उनमें संवेदनशीलता काफी बढ़ जाती है। इस अवस्था में माता-पिता का सफल व सही निर्देशन किशोर के भावी जीवन के निर्धारण की नींव का काम करता है। किशोरावस्था की मुख्य विशेषता किशोरों में पहचान पाने की इच्छा का उत्पन्न होना है। विकास की यह अवस्था किशोरों की सबसे नाजुक अवस्था है इस अवस्था के दौरान किशोरों में तर्कशक्ति तथा चिंतन शक्ति का विकास हो जाता है।
6. प्रौढ़ावस्था - विकास की यह अवस्था 21 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते व्यक्ति पूर्णरूप से परिपक्वता को प्राप्त कर लेता है। व्यक्तियों में परिपक्वता को प्राप्त करने में वैयक्तिक विभिन्नता पाई जाती है अर्थात् कुछ व्यक्ति पूर्ण रूप से परिपक्वता को शीघ्र प्राप्त कर लेते हैं, कुछ देर से प्रौढ़ावस्था में व्यक्ति पर भिन्न प्रकार की जिम्मेदारियों, कर्तव्यों तथा उपलब्धियों को प्राप्त करने का भार बढ़ जाता है। जिन व्यक्तियों को अपने माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों से संपूर्ण स्नेह व प्रेम मिलता है, वे विभिन्न प्रकार के उत्तरदायित्वों व कर्त्तव्यों का निर्वाह अच्छी प्रकार से कर पाते हैं। जबकि पर्याप्त स्नेह व प्रेम से वंचित रहने वाले व्यक्तियों का अपने जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हो जाता है।
अतः उपरोक्त अवस्थाओं के वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विकास एक निरंतर व सतत् चलने वाली प्रक्रिया है, जो जीवन भर चलती रहती है।
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- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ बताइये एवं इसकी प्रकृति को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मनोविज्ञान और शिक्षा के सम्बन्ध का विवेचन कीजिये और बताइये कि मनोविज्ञान ने शिक्षा सिद्धान्त और व्यवहार में किस प्रकार की क्रान्ति की है?
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की भूमिका या महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। शिक्षक प्रशिक्षण में इसकी सम्बद्धता क्या है?
- प्रश्न- वृद्धि और विकास से आपका क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि और विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि और विकास को परिभाषित करें तथा वृद्धि एवं विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- विकास से आपका क्या अभिप्राय है? बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन- कौन-सी हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन के महत्त्व को समझाइये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- मनोविज्ञान एवं अधिगमकर्त्ता के सम्बन्ध की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- शैक्षिक सिद्धान्त व शैक्षिक प्रक्रिया के लिये शैक्षिक मनोविज्ञान का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के कार्यों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मनोविज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अभिवृद्धि तथा विकास से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विकास का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बालक के सम्बन्ध में विकास की अवधारणा क्या है? समझाइये |
- प्रश्न- विकास के सामान्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अभिवृद्धि एवं विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास में वंशानुक्रम का क्या योगदान है?
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है? इसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये। इस अवस्था में शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिये।
- प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु को किस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिये?
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है? बाल्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाल्यावस्था में शिक्षा का स्वरूप कैसा होना चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'बाल्यावस्था के विकासात्मक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के विकास के सिद्धान्त की. विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था में शिक्षा के स्वरूप की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
- प्रश्न- जीन पियाजे के विकास की अवस्थाओं के सिद्धांत को समझाइये |
- प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक मनोविज्ञान एवं मानव विकास)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (मानव वृद्धि एवं विकास )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (व्यक्तिगत भिन्नता )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैशवावस्था, बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था )
- प्रश्न- सीखने की संकल्पना को समझाइए। 'सूझ' सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
- प्रश्न- अधिगम की प्रकृति को समझाइए।
- प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सूझ सीखने में किस प्रकार सहायता करती है?
- प्रश्न- 'प्रयत्न एवं त्रुटि' तथा 'सूझ' द्वारा सीखने में भेद कीजिए।
- प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
- प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के प्रयोग का उल्लेख कीजिए और बताइये कि इस प्रयोग द्वारा निकाले गये निष्कर्ष, शिक्षण कार्य को कहाँ तक सहायता पहुँचाते हैं?
- प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- थार्नडाइक के सीखने के सिद्धान्त का शिक्षा में उपयोग बताइये।
- प्रश्न- शिक्षण में प्रयत्न तथा भूल द्वारा सीखने के सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- 'अनुबन्धन' से क्या अभिप्राय है? पावलॉव के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को नियंत्रित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
- प्रश्न- अनुकूलित अनुक्रिया से आप क्या समझते हैं? इस सिद्धान्त का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
- प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- स्किनर का सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त क्या है? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- स्किनर के सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पुनर्बलन का क्या अर्थ है? इसके प्रकार बताइये।
- प्रश्न- पुनर्बलन की सारणियाँ वर्गीकृत कीजिए।
- प्रश्न- सक्रिय अनुकूलित-अनुक्रिया. सिद्धान्त अथवा पुर्नबलन का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
- प्रश्न- अधिगम के गेस्टाल्ट सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए और इस सिद्धान्त के सबल तथा दुर्बल पक्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समग्राकृति पूर्णकारवाद की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- कोहलर के प्रयोग की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्दृष्टि तथा सूझ के सिद्धान्त से सीखने की क्या विशेषताएँ हैं।
- प्रश्न- पूर्णकारवाद के नियम को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्दृष्टि को प्रभावित करने वाले कारक एवं शिक्षा में प्रयोग बताइये।'
- प्रश्न- अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रॉबर्ट मिल्स गेग्ने का जीवन-परिचय दीजिए तथा इनके द्वारा बताये गये सिद्धान्त का सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गेग्ने के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गेग्ने के योगदान को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर अभिप्रेरणा का अर्थ स्पष्ट करते हुए अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।।
- प्रश्न- अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं? उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है? अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- शैक्षिक दृष्टि से अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- आवश्यकता चालन एवं उद्दीपन के सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कक्षा शिक्षण में पुरस्कार या प्रोत्साहन की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण क्या है? अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण से क्या तात्पर्य है? अधिगम स्थानान्तरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण की दशाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अभिप्रेरणा )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (अधिगम का स्थानान्तरण )
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